ग़ज़ल :- तुमसे प्यारे नगर नहीं होते । आप जब भी इधर नहीं होते ।।१ हाँ दिवानों के घर नहीं होते । प्रेम में जो प्रखर नहीं होते ।।२ ज़िन्दगी हर कदम कहाँ आसाँ । हर तरफ तो डगर नहीं होते ।।३ हर तरफ खून की बहीं नदियाँ । क्या कहूँ अब बशर नहीं होते ।।४ आज चुप क्यों कलम तुम्हारी है । क्या तुम्हें कुछ खबर नहीं होते ५ कुछ न भाता मुझे यहाँ तुम बिन । आप जो अब नज़र नहीं होते ।।६ जिनको मिलते नही यहाँ रहबर । क्या कहूँ उनके सफ़र नही होते ।।७ मान भी लो कभी हमारी तुम हर बशर मे बसर नही होते ।।८ वें प्रखर पर किए सितम इतना । और कहते कहर नहीं होते ।।९ २९/०७/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR तुमसे प्यारे नगर नहीं होते । आप जब भी इधर नहीं होते ।।१ हाँ दिवानों के घर नहीं होते । प्रेम में जो प्रखर नहीं होते ।।२ ज़िन्दगी हर कदम कहाँ आसाँ । हर तरफ तो डगर नहीं होते ।।३