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#ख़्वाबों की #एक्सपायरी

#ख़्वाबों 
             की 
         #एक्सपायरी 

हर ख़्वाब की भी एक उम्र होती है*हर उम्र के अलग ही ख़्वाब होते है
और बक्त रहते ये पूरे हो गए तो ठीक*नहीं तो इनकी भी एक्सपायरी होती है

बचपन में नया बस्ता भी ख़्वाब था*नया जूता भी आसमां से कम न था
फिर नौकरी के ख़्वाब आने लगे*फिर पैसा कमाने, घर बसाने....

ख़्वाब बदलते रहे,साल गुजरते गए*बड़ा घर, बड़ी गाड़ी,शान शौकत
बस ख़्वाब बनते बिगड़ते रहें *हम इनमें ही उलझते रहे

अब जब उम्र सताने लगी*अपनी काया ही भारी लगने लगी
ख़्वाब फ़िर से छोटे होने लगे*छोटा सा घर, छोटी छोटी खुशियां
रह गए हम बूढ़े और बुढ़िया*तो यारों बक्त पर ख़्वाब जी लिया करो
एक्सपायरी का इंतजार न किया करो*बाद में पूरे हो जाए,वो मजा नहीं आएगा
एक्सपेयरी से स्वाद बिगड़ ही जायेगा

©JUGNU RAHI
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