ये दुनिया वाले तो न जाने क्या-क्या नहीं कहेंगे, जो ख़ुद में भी न जी पाए तो हम जाने कहाँ रहेंगे। आँख मूँद कर, सब ख़्वाब यूँ ही कैसे बह जाने दें, ज़िंदा हैं जो अब भी, सपनों की टूटन कहाँ सहेंगे। रूठ गया है माँझी, कब नाव निकल गई हाथों से, औरों से तो कह न पाए, ख़ुद से भी कहाँ कहेंगे। अपने दिल की राह चुनो और बस चलते जाओ, जो कुछ चट्टानें न टूटी, गम के दरिया कहाँ बहेंगे। पूछ रही है मंज़िल, देख रही अब भी राही का रस्ता, आँखों में मायूसी के ये मंज़र ख़ामोश कहाँ रहेंगे। कितना कुछ टूट गया, फिर भी नींव नई गढ़ते हैं, बर्बादी के बाद भी सारे बुनियादी ढांचे कहाँ ढहेंगे। लौट उसी दर आना है चले जहाँ से थे मंज़िल को, ये छोर आख़िरी है अपना, अब आगे कहाँ बढ़ेंगे। चलो अब जंग यहीं खत्म कर देते हैं दुनिया से, पूछ लिया ग़र, तो झूठ खुशफ़हमी से कहाँ कहेंगे, आँखों का पानी झुठलाता है दिल की मज़बूती को, 'बाग़ी' होकर ख़ुद ही ख़ुद से हम जाने कहाँ रहेंगे। ©प्रिंसी मिश्रा #NojotoQuote Dreams And Desires #princimishraquotes #baagijazbaat #poetry #gazal #kavita #emotions #dreams #desires #fullfilment #love #self #writer #words