ग़ज़ल आज बीमार दिल की दवा ही नहीं । क्या लबों पे किसी के दुआ ही नहीं ।। एक अफसोस है तुम कहो तो कहूँ । ज़िन्दगी बिन तुम्हारे जिया ही नहीं बन गये आज वहसी इंसान सब । क्या कहूँ आज उनमें खुदा ही नहीं ।। खत लिखे प्रेम के लाख जिसके लिए । बाद उसमें सुना फिर वफ़ा ही नहीं ।। बात मेरी सदा याद रखना यहाँ । एक रघुनाथ जिसमें खता ही नहीं ।। आ गये चाय पर आज घर वो मेरे । बात दिल की कहें तो बुरा ही नहीं ।। तोड़कर आज दिल वो गये मयकदे । कह रहे ज़ाम हमने छुआ ही नहीं ।। ढूंढ लेंगे सितारे हमें एक दिन । वक्त होता सदा बेवफ़ा ही नहीं ।। आज कैसे करे प्रेम दूजा प्रखर । दिल किसी के लिए ये बचा ही नहीं ।। २४/०२/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल आज बीमार दिल की दवा ही नहीं । क्या लबों पे किसी के दुआ ही नहीं ।।