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// बस… चलते रहो // जीवन के सफ़र में डटे रहो, बस च

// बस… चलते रहो //

जीवन के सफ़र में डटे रहो, बस चलते रहो चलते रहो 
मंज़िल पर रखो निशाना, ख़ामोश चलते रहो चलते रहो।
चलना ही ज़िंदगी है, जीत इस पर ही रहती है कायम
रुकना जो चाहो, ख़ुद से कहो, बस चलते रहो चलते रहो।

चाहे हो स्याह रात या हो पूनम की रात, रखना न भेद
भूल बात को आगे निकल जा, जिस बात का तुझको है खेद।
कल गुजर गया, कुछ न कर पाएगा, आने वाला कल संवार 
ख़ुद को तराशता जा, बेखुद हो चलते रहो चलते रहो।

चाहे नन्ही हो चींटी या हो कछुआ निरंतर यही सीख देते हैं
जो बिना रुके परिश्रम करते हैं वही मंज़िल पर पहुॅंचते हैं
थकान को कर दो अलविदा, मेहनत का सर पर बाॅंध साफा
ख़ुद से ख़ुद को होड़ करने दो, बस चलते रहो चलते रहो।

देह में जब तक श्वास चलती, तुझको पड़ेगा अथक चलना
जब मृत्यु शाश्वत सत्य है तो, रोज तिल-तिल क्यों मरना
ज़िंदगी को रोज जिंदगी से रूबरू कराने का दो बहाना
ख़ुद से प्रेम कर, डूब उसमें, बस चलते रहो चलते रहो।

©Archana Verma Singh
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