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महकी महकी पुरवाई का एक नशा है सांसों में। उसकी सां

महकी महकी पुरवाई का एक नशा है सांसों में।
उसकी सांसों से को टपका इश्क रखा है सांसों में।
उसके तन की छुअन बदन पर लाकर रख दी कलियों ने
हवा का झौंका उसकी खुशबू घोल गया है सांसों में।

पंकज अंगार

©साहित्य संजीवनी
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