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आदमी बे- ज़िगर नहीं होते। इश्क़ से बेख़बर



आदमी  बे- ज़िगर   नहीं    होते।
इश्क़  से   बेख़बर   नहीं   होते।।

सब नज़र का  कमाल   है मिश्रा,
जह्न  में  तार- घर   नहीं   होते।।

बंदिशे हैं ग़ज़ल की कुछ अपनी,
शेर   सब  नाम  पर  नहीं  होते।

हम  मुहब्बत  ज़रूर करते फिर,
ज़िस्म  पर  ज़ख्म गर नहीं होते।

मशवरा फ़्री  का ख़ूब मिलता है,
पर   सभी  कारगर  नहीं   होते।

साथ   देगा   भला   कोई  कैसे?
मौत  में   हमसफ़र   नहीं  होते।

©कमलेश मिश्र
  बेखबर नही होते....

बेखबर नही होते.... #शायरी

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