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गवाही मेरे गुनाहों की।। कौन करेगा पैरवी, देगा कौन

गवाही मेरे गुनाहों की।।

कौन करेगा पैरवी, देगा कौन गवाही, मेरे गुनाहों की,
जब हर चौराहे, होती रही वाह वाही, मेरे गुनाहों की।

छुप जिस चादर में, रहा करता कत्ल खुद का ही,
कौन था साथी, क्या सज़ा है बाकी, मेरे गुनाहों की।

निज मन मे झांका नहीं, बस आवरण का मोह था,
मैं था हकीकत, या कोई परछाई, मेरे गुनाहों की।

हर दर्द में मुस्काता, खुशियों में ग़मज़दा सा रहा,
मैं था झूठ, या था कोई सच्चाई, मेरे गुनाहों की।

परत दर परत, हैं कौन जो रहा उधेड़ता मुझको,
जाने किस कोने दबी थी अंगड़ाई, मेरे गुनाहों की।

रहा खुद को ढूंढता, कभी किस्सा कभी कटाक्ष,
कहानी, डर से थी सबने सराही, मेरे गुनाहों की।

मैं ही अदालत, पेशकार, अधिवक्ता, न्यायाधीश,
किसने कब थी कोई सज़ा सुनाई, मेरे गुनाहों की।

लो, आज होता हूँ पेश मैं अपनी ही अदालत में,
आज खुद मैने, होली है जलाई, मेरे गुनाहों की।।

©रजनीश "स्वछंद" गवाही मेरे गुनाहों की।।

कौन करेगा पैरवी, देगा कौन गवाही, मेरे गुनाहों की,
जब हर चौराहे, होती रही वाह वाही, मेरे गुनाहों की।

छुप जिस चादर में, रहा करता कत्ल खुद का ही,
कौन था साथी, क्या सज़ा है बाकी, मेरे गुनाहों की।
गवाही मेरे गुनाहों की।।

कौन करेगा पैरवी, देगा कौन गवाही, मेरे गुनाहों की,
जब हर चौराहे, होती रही वाह वाही, मेरे गुनाहों की।

छुप जिस चादर में, रहा करता कत्ल खुद का ही,
कौन था साथी, क्या सज़ा है बाकी, मेरे गुनाहों की।

निज मन मे झांका नहीं, बस आवरण का मोह था,
मैं था हकीकत, या कोई परछाई, मेरे गुनाहों की।

हर दर्द में मुस्काता, खुशियों में ग़मज़दा सा रहा,
मैं था झूठ, या था कोई सच्चाई, मेरे गुनाहों की।

परत दर परत, हैं कौन जो रहा उधेड़ता मुझको,
जाने किस कोने दबी थी अंगड़ाई, मेरे गुनाहों की।

रहा खुद को ढूंढता, कभी किस्सा कभी कटाक्ष,
कहानी, डर से थी सबने सराही, मेरे गुनाहों की।

मैं ही अदालत, पेशकार, अधिवक्ता, न्यायाधीश,
किसने कब थी कोई सज़ा सुनाई, मेरे गुनाहों की।

लो, आज होता हूँ पेश मैं अपनी ही अदालत में,
आज खुद मैने, होली है जलाई, मेरे गुनाहों की।।

©रजनीश "स्वछंद" गवाही मेरे गुनाहों की।।

कौन करेगा पैरवी, देगा कौन गवाही, मेरे गुनाहों की,
जब हर चौराहे, होती रही वाह वाही, मेरे गुनाहों की।

छुप जिस चादर में, रहा करता कत्ल खुद का ही,
कौन था साथी, क्या सज़ा है बाकी, मेरे गुनाहों की।

गवाही मेरे गुनाहों की।। कौन करेगा पैरवी, देगा कौन गवाही, मेरे गुनाहों की, जब हर चौराहे, होती रही वाह वाही, मेरे गुनाहों की। छुप जिस चादर में, रहा करता कत्ल खुद का ही, कौन था साथी, क्या सज़ा है बाकी, मेरे गुनाहों की। #Poetry #Quotes #Life #kavita #hindikavita #hindipoetry