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Autumn ग़ज़ल :- हर तरफ दिख रहा बशर तन्हा । है सभी का

Autumn ग़ज़ल :-
हर तरफ दिख रहा बशर तन्हा ।
है सभी का ही अब सफ़र तन्हा ।।

अब ज़रूरत नहीं किसी की मुझे 
गुफ्तगूं हो रही इधर तन्हा ।।

कितने बेताब हैं वो मिलने को
शाम जिनकी गई गुज़र तन्हा ।।

तू उठा हाथ से अभी प्याले ।
फिर न होगी कभी डगर तन्हा ।।

होश आया नहीं प्रखर को फिर ।
जब हुई ख्वाब से नज़र तन्हा ।।

१८/०३/२०२४    -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :-
हर तरफ दिख रहा बशर तन्हा ।
है सभी का ही अब सफ़र तन्हा ।।

अब ज़रूरत नहीं किसी की मुझे 
गुफ्तगूं हो रही इधर तन्हा ।।

कितने बेताब हैं वो मिलने को
Autumn ग़ज़ल :-
हर तरफ दिख रहा बशर तन्हा ।
है सभी का ही अब सफ़र तन्हा ।।

अब ज़रूरत नहीं किसी की मुझे 
गुफ्तगूं हो रही इधर तन्हा ।।

कितने बेताब हैं वो मिलने को
शाम जिनकी गई गुज़र तन्हा ।।

तू उठा हाथ से अभी प्याले ।
फिर न होगी कभी डगर तन्हा ।।

होश आया नहीं प्रखर को फिर ।
जब हुई ख्वाब से नज़र तन्हा ।।

१८/०३/२०२४    -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :-
हर तरफ दिख रहा बशर तन्हा ।
है सभी का ही अब सफ़र तन्हा ।।

अब ज़रूरत नहीं किसी की मुझे 
गुफ्तगूं हो रही इधर तन्हा ।।

कितने बेताब हैं वो मिलने को

ग़ज़ल :- हर तरफ दिख रहा बशर तन्हा । है सभी का ही अब सफ़र तन्हा ।। अब ज़रूरत नहीं किसी की मुझे  गुफ्तगूं हो रही इधर तन्हा ।। कितने बेताब हैं वो मिलने को #शायरी