कहाँ लेखनी है वो औजार बनती है इसके शब्दों की धार बहुत पैनी कहाँ लेखनी है वो जो शिक्षा बनती है नन्हें हाथों से उनका भविष्य लिखती है कहाँ लेखनी है वो जो प्रेम बुनती है प्रेम को प्रेम में रख जिन्दा करती है कहाँ लेखनी है वो व्यवस्थायें गढती है शासन अनुशासन तय कर एक करती है लेखनी सबके पास है काम इसके हजार है ये लेखनी है जो देश को साक्षर करती है पारुल शर्मा कहाँ लेखनी है वो औजार बनती है इसके शब्दों की धार बहुत पैनी कहाँ लेखनी है वो जो शिक्षा बनती है नन्हें हाथों से उनका भविष्य लिखती है कहाँ लेखनी है वो जो प्रेम बुनती है प्रेम को प्रेम में रख जिन्दा करती है कहाँ लेखनी है वो व्यवस्थायें गढती है शासन अनुशासन तय कर एक करती है