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"आँख प्यासी है कोई मन्ज़र इस जज़ीरे को भी समन्दर द

"आँख प्यासी है कोई मन्ज़र इस जज़ीरे को भी समन्दर दे।

अपना चेहरा तलाश करना है, गर नहीं आइना तो पत्थर दे|

बन्द कलियों को चाहिये शबनम,

इन चिराग़ों में रोशनी भर दें।

पत्थरों के सरों से कर्ज़ उतार, इस सदी को कोई पयम्बर दे।

क़हक़हों में गुज़र रही है हयात, अब किसी दिन उदास भी कर दे।

फिर न कहना के ख़ुदकुशी है गुनाह, आज फ़ुर्सत है फ़ैसला कर दे"

©Pramod
  #sayari #gazal