ग़ज़ल :- वो अभी तक तो जताता था हमीं से प्यार है । पीठ पर जो आज करता देख मेरे वार है ।।१ आदमी ही आदमी का कर रहा संहार है । प्यार के अब नाम पर फल फूलता व्यापार है ।।२ भूख जब भी जिश्म़ की लगती यहाँ हैवान को । खोजने फिर वह निकल पड़ता अकेली नार है ।।३ कल हुआ जो हादसा था सुन सरे बाज़ार में । चटपटी सी वह खबर आती सुबह अखबार है ।।४ उठ गया अपना भरोसा देखकर इंसान को । लाश को जब इस तरह बेचा गया बाज़ार है ।।५ मीडिया की बात ही पूछो नही अब आप सब । व्यूज मिल जाए अगर तो हद सभी फिर पार है ।।६ राम को भजते हुए ही प्राण ये निकले प्रखर । जब मिलें उसकी शरण तब छोड़ना संसार है ।।७ २३/१२/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- वो अभी तक तो जताता था हमीं से प्यार है । पीठ पर जो आज करता देख मेरे वार है ।।१ आदमी ही आदमी का कर रहा संहार है ।