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ये वादियाँ यूँ ही मेरे मन को नहीं भाती, कि मेरा मन

ये वादियाँ यूँ ही मेरे मन को नहीं भाती,
कि मेरा मनमीत भी इन्हीं पहाड़ों से है।
गर्मियाँ शहरों की मुझे बेचैन कर जाती,
मेरा रिश्ता गुनगुनी धूप व जाड़ों से है।।

©Diwan G
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