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ग़ज़ल :- बढ़ाकर हाथ को छू लो गगन को । मिटा दो दिल से

ग़ज़ल :-
बढ़ाकर हाथ को छू लो गगन को ।
मिटा दो दिल से तुम अब हर शिकन को ।।१

चलोगे नेक पथ पर जब कभी भी ।
झुकेंगें फिर वो सिर तेरे नमन को ।।२

हिदायत तो यही सबको मिली है ।
कि भूलोगे न फिर अपने वतन को ।।३

न जाने पाये वो बचकर इधर से ।
डगर में आज बैठा दो  नयन को ।।४

नहीं आती हमें है नींद तुम बिन ।
करूँ क्या मैं भला जाके शयन को ।।५

उठी आवाज है दिल से अभी ये ।
निभाना है हमें सारे वचन को ।।६

वफ़ा का नाम मत लेना प्रखर तुम ।
तरसते रह गये वह सब कफ़न को ।।७

१२/०४/२०२४   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :-
बढ़ाकर हाथ को छू लो गगन को ।
मिटा दो दिल से तुम अब हर शिकन को ।।१
चलोगे नेक पथ पर जब कभी भी ।
झुकेंगें फिर वो सिर तेरे नमन को ।।२
हिदायत तो यही सबको मिली है ।
कि भूलोगे न फिर अपने वतन को ।।३
न जाने पाये वो बचकर इधर से ।
ग़ज़ल :-
बढ़ाकर हाथ को छू लो गगन को ।
मिटा दो दिल से तुम अब हर शिकन को ।।१

चलोगे नेक पथ पर जब कभी भी ।
झुकेंगें फिर वो सिर तेरे नमन को ।।२

हिदायत तो यही सबको मिली है ।
कि भूलोगे न फिर अपने वतन को ।।३

न जाने पाये वो बचकर इधर से ।
डगर में आज बैठा दो  नयन को ।।४

नहीं आती हमें है नींद तुम बिन ।
करूँ क्या मैं भला जाके शयन को ।।५

उठी आवाज है दिल से अभी ये ।
निभाना है हमें सारे वचन को ।।६

वफ़ा का नाम मत लेना प्रखर तुम ।
तरसते रह गये वह सब कफ़न को ।।७

१२/०४/२०२४   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :-
बढ़ाकर हाथ को छू लो गगन को ।
मिटा दो दिल से तुम अब हर शिकन को ।।१
चलोगे नेक पथ पर जब कभी भी ।
झुकेंगें फिर वो सिर तेरे नमन को ।।२
हिदायत तो यही सबको मिली है ।
कि भूलोगे न फिर अपने वतन को ।।३
न जाने पाये वो बचकर इधर से ।

ग़ज़ल :- बढ़ाकर हाथ को छू लो गगन को । मिटा दो दिल से तुम अब हर शिकन को ।।१ चलोगे नेक पथ पर जब कभी भी । झुकेंगें फिर वो सिर तेरे नमन को ।।२ हिदायत तो यही सबको मिली है । कि भूलोगे न फिर अपने वतन को ।।३ न जाने पाये वो बचकर इधर से । #शायरी