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दौलत की जिस असंतुष्टि के कारण बेटे ने अपनी मा

     दौलत की जिस असंतुष्टि के कारण बेटे ने अपनी माॅं को अपने ही घर से निकाल बेघर कर दिया, आज वो ही माॅं भिखारियों की पंक्ति में बैठी अपने आप को भाग्यशाली और दुनिया का सबसे संतुष्ट इंसान मान रही थी। क्योंकि उसके दिए संस्कार उसके अपने बेटे ने तो ग्रहण नहीं किए लेकिन वंश में अपना अंश देखना ही युगों युगों से पूर्वजों की असली संतुष्टि और प्रसन्नता का कारण रही है। वो माॅं ख़ुद के श्राद्ध में अपने पोते के हाथ से खुशियों के निवाले खा रही है।

मेरा मन ये दृश्य देखकर खिन्न हो रहा है कि जो बेटा अपनी बूढ़ी माॅं की बीमारी कोढ़ के कारण अपने हाथ से प्रत्यक्ष एक कोर न खिला सका। उस माॅं को बीमारी के चलते रास्ते पर छोड़ आया था, आज उसी ज़िंदा माॅं को बेसहारा छोड़ मान रहा है कि वो अब नहीं रही और उसी का श्राद्ध कर अपनी ज़िंदा माॅं को नही अपने आप को मुक्ति दे रहा है उस पाप से।
©भाग्य श्री बैरागी
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आइए लिखते हैं #ख़यालोंकीउथलपुथल
     दौलत की जिस असंतुष्टि के कारण बेटे ने अपनी माॅं को अपने ही घर से निकाल बेघर कर दिया, आज वो ही माॅं भिखारियों की पंक्ति में बैठी अपने आप को भाग्यशाली और दुनिया का सबसे संतुष्ट इंसान मान रही थी। क्योंकि उसके दिए संस्कार उसके अपने बेटे ने तो ग्रहण नहीं किए लेकिन वंश में अपना अंश देखना ही युगों युगों से पूर्वजों की असली संतुष्टि और प्रसन्नता का कारण रही है। वो माॅं ख़ुद के श्राद्ध में अपने पोते के हाथ से खुशियों के निवाले खा रही है।

मेरा मन ये दृश्य देखकर खिन्न हो रहा है कि जो बेटा अपनी बूढ़ी माॅं की बीमारी कोढ़ के कारण अपने हाथ से प्रत्यक्ष एक कोर न खिला सका। उस माॅं को बीमारी के चलते रास्ते पर छोड़ आया था, आज उसी ज़िंदा माॅं को बेसहारा छोड़ मान रहा है कि वो अब नहीं रही और उसी का श्राद्ध कर अपनी ज़िंदा माॅं को नही अपने आप को मुक्ति दे रहा है उस पाप से।
©भाग्य श्री बैरागी
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