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ऐ मन भाग जहां तक भागा जाय न कर जतन, न कोई हवन जाने

ऐ मन भाग जहां तक भागा जाय
न कर जतन, न कोई हवन
जाने दे, जाये जिस जिस ओर
न हार हिम्मत, न कर कोई उपाय। 
ऐ मन भाग जहां तक भागा जाय

रात हो या दिन हो, चाहे सांझ की बेला
हर पल हजारों का हर जगह मेला 
तू न इनतजार कर, न छोड किसी को
चलना पडे तन्हा, तो भी तू चल अकेला 
ले किसी की दुआ या किसी की राय
ऐ मन भाग जहाँ तक भागा जाय। 

हो दर्द तुझे या मिले आनंद की छांव 
अनजान नगर मिले या दिखे वात्सल्य गांव 
कोई उर लगाये या चले कोई कुटिल दांव
तू उड पंछी सा या डाल मंझधार में नाय
ऐ मन भाग जहां तक भागा जाय।। 

।। आवरण।।

©Kuldeepak Singh 
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