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रिश्ते सिमटते हुए रिश्ते को, टुटते देखा है। हं

रिश्ते

सिमटते हुए रिश्ते को,
 टुटते देखा है। 

हंसते हुए रिश्तों को, 
रोते देखा है।

टूक टूक घड़ी सी, 
रिश्तों में आवाज़ थी। 

रिश्तों में जो कमी थी,
बस खामोश घड़ी थी।

रिमझिम बारिश की बूंदों सी, 
रिश्तों में नमी थी

उफ़ दहलीज दरवाज़े पर, 
खड़े रिश्ते ढूंढता।

कहां मिलता साहब,
कहर बनकर जो ढली थी।

©Gautam Kumar
  Rishte
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 Irfan Saeed Bulandshari Aarya bareth Diwan G करुणेश विश्वकर्मा  Er.ABHISHEK SHUKLA