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कौन कहता है कि मौत का, तय वक्त होता है.. ये जिस्म

कौन कहता है कि मौत का, तय वक्त होता है..
ये जिस्म रोज मर रहा है, थोड़ा थोड़ा..
जिंदगी और क्या, चंद सांसो की मोहलत है..
वक्त वो कम हो रहा है, थोड़ा थोड़ा..
एक उम्र तक, जेहन मे एक गुमान रहता था..
गुमां मद्धम हो रहा है, थोड़ा थोड़ा..
ये जमाना, एक दौर मे रंगीन लगता था..
रंग बेरंग हो रहा है, थोड़ा थोड़ा..
वो खेल कूद,भाग दौड़ का जो एक दौर था..
रोज थम सा रहा है, थोड़ा थोड़ा..
एक मुस्कान एक हंसी, चेहरे पे छपी थी..
रुप वो ढल सा रहा है, थोड़ा थोड़ा..
ये जिस्म रोज मर रहा है, थोड़ा थोड़ा..!!!!!

©Akkhil
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Akkhil

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