कुछ कह देता तो अच्छा होता। चुपचाप रहा सहते, कुछ कह देता तो अच्छा होता। रहे खफा यूँ भी वो, कुछ सह लेता तो अच्छा होता। नादां था मैं, नादां थे वो, थी नादां जरा मुहब्बत भी, सच तो मालूम रहा, कुछ कह देता तो अच्छा होता। कभी चांद, तारे कभी, कभी आशियाँ ख्वाबों भरे, गुमसुदा था मैं जरा, कुछ कह देता तो अच्छा होता। हर पन्ने पे लिखना नाम उनका, छुपा के औरों से, पन्नो से निकल जरा, कुच्छ कह देता तो अच्छा होता। रखना छुपाये तस्वीर, देखना उसे छुप अकेले में, उनसे मिल मैं जरा, कुच्छ कह देता तो अच्छा होता। पढ़ना रातों को देर तलक, अंधेरों में ढूंढना उनको, दिन के वक़्त जरा, कुच्छ कह देता तो अच्छा होता। कॉलेज की सीढ़ियों पर, ले किताब देखना उनको, रोक उनको जरा, कुच्छ कह देता तो अच्छा होता। क्यूँ चल रहा तन्हा, अश्कों से पलकेँ भिंगोये हुए, एक कदम पे जरा, कुछ कह देता तो अच्छा होता। हैँ वो आज दूर बहुत, किसी पराये की बांहों में, जब था संग जरा, कुछ कह देता तो अच्छा होता। खुद से करता था बातें, जो अब भी हूँ करता मैं, बात दिल की जरा, कुछ कह देता तो अच्छा होता। ©रजनीश "स्वछंद" #NojotoQuote कुछ कह देता तो अच्छा होता। चुपचाप रहा सहते, कुछ कह देता तो अच्छा होता। रहे खफा यूँ भी वो, कुछ सह लेता तो अच्छा होता। नादां था मैं, नादां थे वो, थी नादां जरा मुहब्बत भी, सच तो मालूम रहा, कुछ कह देता तो अच्छा होता।