जिंदगी कैसे इम्तहानों से गुजर रही है खुशिया पास आने से भी मुकर रही है गुना तो निगहो ने ही किया था मंजर निहारने का इसकी सजा भी इनिहि पे गुजर रही है.. सुमित बरी