ग़म-ए-दहर भी जिसमें सुकून दे जाए बेदार-ए-फुर्क़त भी मुहब्बत का जुनूँ हो जाये। ऐसी चाहत के ज़हाँ हिज़्र भी बेईमानी लगे। सुकून-ए-वस्ल बस ख़्वाबों के नाम हो जाये। और हर रोज़ बस यही एक दौर चले सुबह तेरी यादोँ के साथ जागूँ मैं और तेरी यादोँ में शाम हो जाये।। - क्रांति #तेरेनाम #क्रांति