वो जो गांव के छप्पर में सुकून है, वो शहर के घरों में कहाँ। वो जो गांव के घरों में अपनापन है, वो शहर की चारदीवारी में कहाँ। वो जो गांव के हंसी ठिठोली के किस्से हैं, वो शहर की महफिलों में कहाँ। जो गांव के लोगों का सादापन है, वो शहर के लोगों में कहाँ। वो जो गांव के खेतों की सैर में सुकून है, वो शहर की गलियों में कहाँ। वो जो गांव के मेलों का मजा है, वो शहर के चकाचौंधमें कहाँ। #गाँव_की_यादें