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न जानें किस बात का गम है अब तो शब्दों का स्पर्श कम

न जानें किस बात का गम है
अब तो शब्दों का स्पर्श कम है
तभी तो लोग सुनके अनसुने हैं
कैसे परखूं कि कैसा वहम है
न जानें किस......
आखिर किस बयार का असर है
आज विद्वानों की आखें नम है 
अजीब सी खामोशी छाई हुई है
कुछ उजड़ा उजड़ा सा चमन है
न जानें किस......
थकी थकी सी लगती है विद्वता
तभी तो भ्रमित हो गई कलम है
एक ही दिशा के सभी हो गए हैं
कैसे कहूं "सूर्य" विचलित ये मन है
न जानें किस......

©R K Mishra " सूर्य "
  #शब्द#स्पर्श  PRIYANK SHRIVASTAVA 'अरमान' Ƈђɇҭnᴀ Ðuвєɏ Ashutosh Mishra Parastish Rama Goswami