महफिलों में अक्सर उसकी याद आती है रातों को जब होती

महफिलों में अक्सर उसकी याद आती है
रातों को जब होती है खामोशी तब वो आवाज लगाती हैं
घंटो होती है बाते उससे जब वो कमबख्त मेरे साथ होती है
अक्सर रात को मेरी तन्हाई मुझे अपने पास बुलाती है!!

बेपनाह प्यार है मुझे मेरी तन्हाई से 
फर्क ही नहीं पड़ता अब ज़माने की रुसवाई से
कई अपनो को खोया है इस एक सौगात के लिए मैंने 
मुझे अब डर नही लगता किसी की बेवफाई से!!

तन्हाई से प्यार करके मैंने खुद को पाया है
इस तन्हाई में हरदम ही मेरा साथ निभाया है
अपनो की भीड़ ने जब जब मुझे पराया किया
तब मेरी तन्हाई ने यारो मुझे अपने पास बुलाया है!!

तन्हाई की मुझे अब ऐसी आदत लगी है कि भीड़ देखता हूं तो डर जाता हूं
दिनभर भटकता हूं दुनिया में कहीं भी लेकिन शाम को अपनी तन्हाई के साथ ही घर जाता हूं!!



कवि: इंद्रेश द्विवेदी (पंकज)

©Indresh Dwivedi
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