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कोई मुझे बचपन लौटा दो... ना कोई फिक्र, ना कोई गम

कोई मुझे बचपन लौटा दो...

ना कोई फिक्र,
ना कोई गम था,
आंखों में आंसू भी थे,
तो पल भर के लिए,
लगता था पूरी उम्र,
खुशियां ही हैं हमारे हिस्से में,
फुरसत ना होती थी कि,
खुद को देखें शीशे में,
वो दोस्तों के साथ खेलना - कूदना,
पल भर में उससे नाराज़ होना,
एक बिस्कुट पाकर खुश हो जाना,
वो सब लौटा दो,
ये आज की डिजिटल दुनिया को मिटा दो,
मुझे मेरा बचपन लौटा दो,
मुझे मेरा बचपन लौटा दो!!

©Rajendra Gupta
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