गलती कर देता हूँ आकर, झुक जाता हर बात भुलाकर, हो जाए जब सजा मुक़र्रर, भूल माफ़ कर दे करुणाकर, अक्ल न आई समय के रहते, क्या होगा पीछे पछताकर, समझ की खिड़की बंद पड़ी है, क्या कर लेंगे स्वयं दिवाकर, शंकाओं के बादल घिरकर, ढक देते हैं पूर्ण सुधाकर, शांति बिना सब वैभव फीका, व्यापक सत्य सदैव चराचर, तारतम्य बिन सफर अधूरा, चलना पड़ता कदम मिलाकर, अंतर्मुख हो जाओ 'गुंजन', अंतर्घट हैं परम विभाकर, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #क्या होगा पीछे पछताकर#