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महबूब का घर हो कि बुज़ुर्गों की ज़मीनें जो छोड़

महबूब का घर हो कि बुज़ुर्गों की ज़मीनें 

जो छोड़ दिया फिर उसे मुड़ कर नहीं देखा
#poem #sad

महबूब का घर हो कि बुज़ुर्गों की ज़मीनें जो छोड़ दिया फिर उसे मुड़ कर नहीं देखा #poem #SAD #शायरी

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