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बचपन और माँ उसे तेज़ बुख़ार था फिर भी घर बुहार रही

बचपन और माँ  उसे तेज़ बुख़ार था फिर भी घर बुहार रही थी,
कभी धोती कपड़े तो कभी बर्तन माँज रही थी,
एक बड़े बच्चे और एक दुधमुँहे को भी संभाल रही थी,
कोई उसका भी हाल पूँछे, कहाँ थी किसी को इतनी फुर्सत, 
निःस्वार्थ भाव से ख़ुद को उजाड़ रही थी,
वो माँ थी दोस्त,
ख़ुद को घिस-घिस कर हमको सँवार रही थी।

©HINDI SAHITYA SAGAR
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उसे तेज़ बुख़ार था फिर भी घर बुहार रही थी,
कभी धोती कपड़े तो कभी बर्तन माँज रही थी,
एक बड़े बच्चे और एक दुधमुँहे को भी संभाल रही थी,
कोई उसका भी हाल पूँछे, कहाँ थी किसी को इतनी फुर्सत, 
निःस्वार्थ भाव से ख़ुद को उजाड़ रही थी,
वो माँ थी दोस्त,
ख़ुद को घिस-घिस कर हमको सँवार रही थी।

#maa #bachpan #poem #Hindi #hindi_poetry #hindisahityasagar #motherlove #maa#maa_ka_pyar उसे तेज़ बुख़ार था फिर भी घर बुहार रही थी, कभी धोती कपड़े तो कभी बर्तन माँज रही थी, एक बड़े बच्चे और एक दुधमुँहे को भी संभाल रही थी, कोई उसका भी हाल पूँछे, कहाँ थी किसी को इतनी फुर्सत, निःस्वार्थ भाव से ख़ुद को उजाड़ रही थी, वो माँ थी दोस्त, ख़ुद को घिस-घिस कर हमको सँवार रही थी। #कविता #Maa❤

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