उलझ रहा हूँ मैं, कैसे अपने को बाहर लाऊँ जीवन की उलझन को कैसे ? मैं सुलझाऊँ संग चलता है कोई, कोई पीछे रह जाता है साथ-साथ चलने का ये हुनर कैसे मैं पाऊँ अभिलाषा अनगिनत 'मन' करता रहता है इनमें से 'जीवन' का सच कैसे ? जान पाऊँ रिश्तों की उलझन है, है कर्मों का बंधन यहाँ 'जीवन' को सार्थक कैसे ? आज मैं बनाऊँ दर्द बेहिसाब है, सुकून की 'छाया' कहीं नहीं दुःख व दर्द में कैसे ? सुकून को मैं ढूँढ पाऊँ #restzone #rztask68 #rzलेखकसमूह #उलझन #उलझनें_जिंदगी_की #जिंदगी #अल्फाज_ए_कृष्णा