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कहाँ तो तय था चिराग़ाँ हर एक घर के लिए कहाँ चिराग़

कहाँ तो तय था चिराग़ाँ हर एक घर के लिए
कहाँ चिराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए।

यहाँ दरख़तों के साये में धूप लगती है
चलो यहाँ से चलें और उम्र भर के लिए। 




-दुष्यंत कुमार कहाँ तो तय था #चिराग़ाँ हर एक घर के लिए
कहाँ #चिराग़ मयस्सर नहीं #शहर के लिए 

यहाँ #दरख़तों के साये में #धूप लगती है
चलो यहाँ से चलें और #उम्र भर के लिए 
#Dushyant Kumar
कहाँ तो तय था चिराग़ाँ हर एक घर के लिए
कहाँ चिराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए।

यहाँ दरख़तों के साये में धूप लगती है
चलो यहाँ से चलें और उम्र भर के लिए। 




-दुष्यंत कुमार कहाँ तो तय था #चिराग़ाँ हर एक घर के लिए
कहाँ #चिराग़ मयस्सर नहीं #शहर के लिए 

यहाँ #दरख़तों के साये में #धूप लगती है
चलो यहाँ से चलें और #उम्र भर के लिए 
#Dushyant Kumar

कहाँ तो तय था #चिराग़ाँ हर एक घर के लिए कहाँ #चिराग़ मयस्सर नहीं #शहर के लिए  यहाँ #दरख़तों के साये में #धूप लगती है चलो यहाँ से चलें और #उम्र भर के लिए  #dushyant Kumar #poem