ग़ज़ल तू दबे को नहीं दबाया कर । बात मज़लूम की उठाया कर ।।१ याद में उनको तू बुलाया कर । ख्वाब में फिर गले लगाया कर ।।२ जिस तरह बढ़ रही है जनसंख्या । उसमें अपने विचार लाया कर ।।३ मारकर हक किसान का तुम भी । धाक अपनी उन्हें दिखाया कर ।।४ देखकर लूट इस तरह जग की । बैठ कर चुप न फुसफुसाया कर ।।५ हुस्न जब बेमिसाल है खोजा तो नखरे भी सभी उठाया कर ।।६ प्यार में मत करो दगा कोई । हँसकर रिश्ता प्रखर निभाया कर ।।७ ०७/०२/२०२४ महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल तू दबे को नहीं दबाया कर । बात मज़लूम की उठाया कर ।।१