ग़ज़ल:- कैसे गले लगे हो गद्दार की तरह से । दिल से जरा लगो तो दिलदार की तरह से ।।१ हमसे नही छुपाओ बातें कभी जिया की । खुलकर कहो मिरी जाँ हकदार की तरह से ।।२ उड़ती हुई सुनी है हमने यही खबर कल । चर्चा हुआ तुम्हारा कचनार की तरह से ।।३ घर द्वार चाहिए तो आना कभी नगर में । सब कुछ तुम्हें मिलेगा परिवार की तरह से ।।४ जीवन यहाँ हमीं ने अपना सुनो डुबाया । अब दोष दे किसे हम पतवार की तरह से ।।५ पहली दफा मिली थी उनसे सुनों नज़र यह । जिस पर किया भरोसा गंवार की तरह से ।।६ छल कर चले गये हैं रिश्ते सभी प्रखर को । अच्छा प्रयोग है ये व्यापार की तरह से ।।७ ०७/०७/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल:- कैसे गले लगे हो गद्दार की तरह से । दिल से जरा लगो तो दिलदार की तरह से ।।१ हमसे नही छुपाओ बातें कभी जिया की । खुलकर कहो मिरी जाँ हकदार की तरह से ।।२ उड़ती हुई सुनी है हमने यही खबर कल ।