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आते - आते मेरा नाम - सा रह गया उसके होठ

आते  -  आते  मेरा   नाम - सा   रह   गया
उसके   होठों   पे  कुछ   कंपता  रह  गया

रात   मुजरिम  थी ,  दामन   बचा  ले  गयी
दिन  गवाहों   के  सफ़  में  खडा  रह  गया

वह    मेरे    सामने    ही    गया   और   मैं 
रास्ते     की   तरह    देखता    रह     गया

झूठ   वाले   कहीं - से -  कहीं    बढ   गये
और   मैं  था  कि   सच   बोलता  रह  गया

आँधियों    के    इरादे    तो  अच्छे    न   थे
यह   दिया   कैसे   जलता  हुआ   रह  गया

उसको  कांधों   पे  ले  जा  रहे  हैं ' वसीम '
और  वह  जीने  का हक़  मांगता  रह गया

प्रो वसीम बरेलवी

©Vivek Dixit swatantra
  #WinterEve #vasheem barelvi