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दो पल की जिंदगी पर इतना गुरूर है। अपनों के दरम्या

दो पल की जिंदगी पर इतना गुरूर है।
अपनों  के दरम्यां भी अपनों से दूर है।
कब साथ छोड़ देगी कोई बता न सकता,
तबतक हैं ख्वाब रंगीं जबतक शुरूर है।
कोई बना सितमगर, कोई बना फरेबी,
कोई खुद को सोचता है जन्नत का हूर है।
करता खता हजारों अफसोस नहीं करता ,
अपनों की इक खता पर गुस्से से चूर है।
"बेखुद" महल बनाता  रहता न चार दिन भी,
इक दिन चिराग सबका बुझता जरूर है।

©Sunil Kumar Maurya Bekhud
  #gajal