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आज मन में आया कुछ लिखूँ, जिसमें दर्द न हो, खामोशी

आज मन में आया कुछ लिखूँ, जिसमें दर्द न हो,
खामोशी से पलकों को भिगाऊँ - पर आँखें सर्द न हों।

सोंचता हूँ लिख दूँ  - मुहब्बत को तेरे होंठों पर,
और चाहता हूँ इस जहाँ में - तेरे जैसा कोई बेदर्द न हो।

खाली पन्नों को देख सोंच बैठा हूँ - न उठाऊँगा कलम,
आज उनपर भी स्याही न चलाऊँ - तो कोई हर्ज न हो।

लहरें भी सोंचती हैं क्यूँ - किनारे पर ठोकरें खाऊँ,
निशाँ मिटाता चलूँ जिससे - सागर पर कोई कर्ज़ न हो।

आ लौट चलें फिर से उस जन्नत में - जहाँ साथ हों हम,
"इश्क" रूह में घुलता हो - "मुहब्बत हो"कोई मर्ज़ न हो।।

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©Neel
  #जन्नत 🍁
archanasingh1688

Neel

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