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दूरी मरासिम में कुछ इस कदर बढ़ती गई चाहत नए रि

दूरी मरासिम में कुछ  इस कदर  बढ़ती गई 
चाहत  नए  रिश्ते बनाने  की  सिमटती गई 

बे-ख़्याली  इस तरह से छाई  मेरे दिल  पर 
अपने  ही  ख़्याल  से  नज़र  सरकती  गई 

ना-क़ाबिल ही रहा रिश्ते संभालने  में  सदा 
उम्र सारी छूटते रिश्ते  देखने में गुज़रती गई 

सुबह  आती  रही  नई  उम्मीद साथ  लेकर 
शाम  सच्चाई  से  हर बार ही  मुकरती  गई 

वक़्त  ठहरा  ही  नहीं  बस  चलता ही  रहा 
मानिंद  रेत के  ज़िन्दगी बस फिसलती  गई 

तेरी यादों का काफिला साथ रहता है हमेशा 
यादें मेरी, तेरे दिल से मोम सी पिघलती गई 

बातें  भी  सबसे  कम  करने  लगा  हूँ  अब 
तेरी  दी  आदत ये  तेरे साथ  ही  चली  गई 

तेरी बातें हर  शाम थकान उतारती थीं  मेरी
तेरी  हर बात हर याद हर शाम रुलाती  गई

©Prashant Shakun "कातिब"
  #मरासिम = रिश्ता, संबंध



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