रंग लाल को लाल दिखलाता है, गालों की खिंचन मुस्कान बताता है, आईना झूठा लगे, हां बहुत झूठा है... महफिलों में झूमरों की याद-ए-दरिया.. ठहरा कर शमा संदली बनाता है! आईना झूठा लगे, हां बहुत झूठा है... सुदूर पड़ा सब पहुंच में बतलाता, पहुंच से दूर फिर भी छुआ जो...! आईना झूठा लगे, हां बहुत झूठा है... वक्त पड़ने पर रोशनी को दिन... अंधेरे को गमजदा रात बतलाता है! आईना झूठा लगे, हां बहुत झूठा है... रंग लाल को लाल दिखलाता है, गालों की खिंचन मुस्कान बताता है, आईना झूठा लगे, हां बहुत झूठा है... महफिलों में झूमरों की याद-ए-दरिया.. ठहरा कर शमा संदली बनाता है! आईना झूठा लगे, हां बहुत झूठा है...