जहाँ मैं हूँ वहाँ तुम हो,सामने न सही ज़ेहन में हो
क्या गिला क्या शिकवा करूँ,अब तो बस तुम ही तुम हो...
तुम्हे यक़ीन नही रहा कभी वफ़ा ए सैलानी का तो न सही
मेरे पास सबूत ए दर्द,तन्हाई के शिवाय कुछ भी नही
इतना ही नही मिले जो ज्यादा वफ़ा मुझसे तो बेझिझक वही अपना मुक़ाम बना लेना
वरना दर ए वफ़ा की कोई भी राह पकड़ मुझ तक चले आना,,,
चाय की प्याली अब भी वही है,तुम सिर्फ इस प्याले में चाय भरने चले आना...
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