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कभी ऐसा भी होता है, नजर मंजिल नहीं आती। अंधेरा हर

कभी ऐसा भी होता है, नजर मंजिल नहीं आती।
अंधेरा हर तरफ दिखता, नजर ज्योति नहीं आती।

सुबह से शाम होती है, तड़प दिनरात होती है।
न दिल को चैन ही मिलता, नजर मायूस होती है।
कभी हंसना भी गर चाहे,हंसी भी तब नहीं आती।
कभी ऐसा भी होता है ,नजर मंजिल नहीं आती।।

न हंसता है न रोता है, न जीता है न मरता है।
कहे किससे वो हाल ए दिल, जुबां खामोश रखता है।
चला है बैठ जिस किश्ती, भंवर में वो नजर आती।
कभी ऐसा भी होता है,नजर मंजिल नहीं आती।।

जाए तो किधर जाए, नहीं कुछ सूझता उसको।
सहारे हैं न साथी हीं, डगर दिखता नहीं उसको।
अब जिन्दगी में रौनक उसको नजर नहीं आती।
कभी ऐसा भी होता है, नजर मंजिल नहीं आती।।

©नागेंद्र किशोर सिंह
  # कभी ऐसा भी होता है..।