अजनबियों से जान पहचान अच्छा लगता है। किसी का कहना मुझे जान अच्छा लगता है। इश्क़ नहीं पिता की इज़्ज़त ज्यादा प्यारी थी। मुझे तुम्हारी यही अभिमान अच्छा लगता है। तेरी हर अदा यूं तो बे-मिसाल हुआ करती है। फूलों की तरह तेरी मुस्कान अच्छा लगता है। साफ-साफ नहीं तोतली है, बड़े लोगो से ज्यादा नन्हें मासूमों की मीठी जुबान अच्छा लगता है। दिन ज़रूरत-ए-जिस्त-ए-रोजगार में गुजरती है। हमें रात भर देखना आसमान अच्छा लगता है। अम्न-ओ-ईमान का किसी इंसान का यकीं नहीं। ऐसी जहान में जय तिरा ईमान अच्छा लगता है। ©mritunjay Vishwakarma "jaunpuri" अच्छा लगता है। #ग़ज़ल #शेर #मूक्तक #LostInNature