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मुझे शीत मौसम रिझाने लगा है । मिरा हमसफ़र याद आने ल

मुझे शीत मौसम रिझाने लगा है ।
मिरा हमसफ़र याद आने लगा है ।।१

वही बाजरे की बनी गर्म रोटी 
मुझे याद उसकी दिलाने लगा है ।।२

परोसी नही थी कभी शर्द  थाली ।
यही सोचकर आँख भिगाने लगा है ।।३

पराठे बहुत ही सुहाने बने है ।
मिरा पेट यादें दिलाने लगा है ।।४

गया है मुझे जो यहाँ छोड़ करके ।
वही रात दिन तो सताने लगा है ।।५

कहूँ क्या कदम आज उठते नही है ।
कि घर भी मुझे अब डराने लगा है ।।६

लगी उम्र ढलने प्रखर की अभी से
बहुत कहर अब शीत ढाने लगा है ।।७

२०/१२/२०२२   -     महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मुझे शीत मौसम रिझाने लगा है ।
मिरा हमसफ़र याद आने लगा है ।।१

वही बाजरे की बनी गर्म रोटी 
मुझे याद उसकी दिलाने लगा है ।।२

परोसी नही थी कभी शर्द  थाली ।
यही सोचकर आँख भिगाने लगा है ।।३
मुझे शीत मौसम रिझाने लगा है ।
मिरा हमसफ़र याद आने लगा है ।।१

वही बाजरे की बनी गर्म रोटी 
मुझे याद उसकी दिलाने लगा है ।।२

परोसी नही थी कभी शर्द  थाली ।
यही सोचकर आँख भिगाने लगा है ।।३

पराठे बहुत ही सुहाने बने है ।
मिरा पेट यादें दिलाने लगा है ।।४

गया है मुझे जो यहाँ छोड़ करके ।
वही रात दिन तो सताने लगा है ।।५

कहूँ क्या कदम आज उठते नही है ।
कि घर भी मुझे अब डराने लगा है ।।६

लगी उम्र ढलने प्रखर की अभी से
बहुत कहर अब शीत ढाने लगा है ।।७

२०/१२/२०२२   -     महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मुझे शीत मौसम रिझाने लगा है ।
मिरा हमसफ़र याद आने लगा है ।।१

वही बाजरे की बनी गर्म रोटी 
मुझे याद उसकी दिलाने लगा है ।।२

परोसी नही थी कभी शर्द  थाली ।
यही सोचकर आँख भिगाने लगा है ।।३

मुझे शीत मौसम रिझाने लगा है । मिरा हमसफ़र याद आने लगा है ।।१ वही बाजरे की बनी गर्म रोटी मुझे याद उसकी दिलाने लगा है ।।२ परोसी नही थी कभी शर्द थाली । यही सोचकर आँख भिगाने लगा है ।।३ #शायरी