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मैं हमेशा साथ हूँ तुम्हारे हर गम में, मेरी हमेशा

मैं हमेशा साथ हूँ तुम्हारे हर गम में, 
मेरी हमेशा नज़र है तुम्हारे हर शिकन में। 
शायद बातों में बहुत कच्चा रहूँ, पर
मैं साथ चल रहा हूँ तुम्हारे हर मोड़ पर। 
मैं तुम्हारे मकसदों और ज़रुरतो से वाकिफ़ हूँ, 
इसलिए अपने हर जज़्बात को दबाया है,
मैं अपने ही दिल‌ का गुनहगार हूँ। 
मैं तुम्हारे अनकहे लफ़्ज़ सुन‌ सकता हूँ, 
मैं तुम्हारे मिटाए हुए अल्फ़ाज़ पढ़ सकता हूँ। 
तुम्हारे कहने या न‌ कहने से फर्क नहीं पड़ता, 
मैं तुम्हारे अंदर की खामोशी को‌ महसूस कर सकता हूँ। 
मैं तुम्हारे मुताबिक ढल जाउंगा,  
तुम्हारे हर अंधेरे को रोकने की कोशिश करुंगा। 
पर, जिस दिन मेरे अंदर सब खत्म हो जाएगा, 
उस दिन हर वक्त का हिसाब लिख लिया जाएगा। 
शायद मेरे नज़दीक आने से भी जल जाओ तुम, 
उतना लावा पिघलकर बाहर आ जाएगा। 
उस वक्त मुझे शायद कुछ महसूस नहीं होगा, 
तुम्हारे रहने या न‌ रहने से कुछ फ़र्क़ नहीं पड़ेगा।

©Ananta Dasgupta
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