Nojoto: Largest Storytelling Platform

हर बार छला जाता हूँ।। तेरे रुदन का स्वर भी अब कान

हर बार छला जाता हूँ।।

तेरे रुदन का स्वर भी अब कानों में गूंज नहीं पाता।
सत्ता के इस चकाचौध में कुछ भी सूझ नहीं पाता।

रोटी छीनी जाती है, मैं सड़कों पे लाया जाता हूँ,
पांच बरस में एक बार फिर से बहलाया जाता हूँ।
अपने कलंक धोने को, मेरे लहु को पानी करते हो,
मिल जाये सत्ता तो फिर अपनी मनमानी करते हो।
हृदय बने हैं पत्थर क्यूँ, जो दर्द नहीं दिख पाता है,
इस ईमान का क्या करना, कौड़ी में बिक जाता है।

तेरी इन बहकी चालों को कोई क्यूँ बूझ नहीं पाता।
सत्ता के इस चकाचौध में कुछ भी सूझ नहीं पाता।

लोकतंत्र की बातें हैं बातें, जनता तो रौंदी जाती है,
अपना भोग लगाने को, इनकी थाली औंधी जाती है।
गरीब गरीब का नारा बस, नारों से पेट नहीं भरता,
ईमान बिके बाज़ारों में, क्यूँ इनका रेट नहीं घटता।
सड़कछाप गुंडे भी देखो अब बन नेता बौराते हैं,
अंधे बहरे लोकतंत्र की ये ही जनता को सौगाते हैं।

ईमान बना है बौना यहां, भूख से जूझ नहीं पाता,
सत्ता के इस चकाचौध में कुछ भी सूझ नहीं पाता।

रजनीश "स्वच्छंद" #NojotoQuote हर बार छला जाता हूँ।।

तेरे रुदन का स्वर भी अब कानों में गूंज नहीं पाता।
सत्ता के इस चकाचौध में कुछ भी सूझ नहीं पाता।

रोटी छीनी जाती है, मैं सड़कों पे लाया जाता हूँ,
पांच बरस में एक बार फिर से बहलाया जाता हूँ।
अपने कलंक धोने को, मेरे लहु को पानी करते हो,
हर बार छला जाता हूँ।।

तेरे रुदन का स्वर भी अब कानों में गूंज नहीं पाता।
सत्ता के इस चकाचौध में कुछ भी सूझ नहीं पाता।

रोटी छीनी जाती है, मैं सड़कों पे लाया जाता हूँ,
पांच बरस में एक बार फिर से बहलाया जाता हूँ।
अपने कलंक धोने को, मेरे लहु को पानी करते हो,
मिल जाये सत्ता तो फिर अपनी मनमानी करते हो।
हृदय बने हैं पत्थर क्यूँ, जो दर्द नहीं दिख पाता है,
इस ईमान का क्या करना, कौड़ी में बिक जाता है।

तेरी इन बहकी चालों को कोई क्यूँ बूझ नहीं पाता।
सत्ता के इस चकाचौध में कुछ भी सूझ नहीं पाता।

लोकतंत्र की बातें हैं बातें, जनता तो रौंदी जाती है,
अपना भोग लगाने को, इनकी थाली औंधी जाती है।
गरीब गरीब का नारा बस, नारों से पेट नहीं भरता,
ईमान बिके बाज़ारों में, क्यूँ इनका रेट नहीं घटता।
सड़कछाप गुंडे भी देखो अब बन नेता बौराते हैं,
अंधे बहरे लोकतंत्र की ये ही जनता को सौगाते हैं।

ईमान बना है बौना यहां, भूख से जूझ नहीं पाता,
सत्ता के इस चकाचौध में कुछ भी सूझ नहीं पाता।

रजनीश "स्वच्छंद" #NojotoQuote हर बार छला जाता हूँ।।

तेरे रुदन का स्वर भी अब कानों में गूंज नहीं पाता।
सत्ता के इस चकाचौध में कुछ भी सूझ नहीं पाता।

रोटी छीनी जाती है, मैं सड़कों पे लाया जाता हूँ,
पांच बरस में एक बार फिर से बहलाया जाता हूँ।
अपने कलंक धोने को, मेरे लहु को पानी करते हो,

हर बार छला जाता हूँ।। तेरे रुदन का स्वर भी अब कानों में गूंज नहीं पाता। सत्ता के इस चकाचौध में कुछ भी सूझ नहीं पाता। रोटी छीनी जाती है, मैं सड़कों पे लाया जाता हूँ, पांच बरस में एक बार फिर से बहलाया जाता हूँ। अपने कलंक धोने को, मेरे लहु को पानी करते हो, #Poetry #poem #kavita #hindipoetry