हर बार छला जाता हूँ।।
तेरे रुदन का स्वर भी अब कानों में गूंज नहीं पाता।
सत्ता के इस चकाचौध में कुछ भी सूझ नहीं पाता।
रोटी छीनी जाती है, मैं सड़कों पे लाया जाता हूँ,
पांच बरस में एक बार फिर से बहलाया जाता हूँ।
अपने कलंक धोने को, मेरे लहु को पानी करते हो, #Poetry#poem#kavita#hindipoetry