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थकता हूँ में थकता हूँ,पर चलता हूँ म

               थकता हूँ में
थकता हूँ,पर चलता हूँ मैं , मजबूरी मुझे
चलाती है मेहनत करके कमाता हूँ में,
लाचारी आँख दिखाती है,रुक कर आराम
 करूँ तो, ज़िंदगी आईना दिखाती है, क्या
 खायेगा कह कर हर दिन रात मुझे  भगाती
 है ,थकता हूँ, पर चलता हूँ मैं, मजबूरी मुझे
 चलाती है हसरत मुझे की मेरा भी ऊँचा भला 
कारोबार हो, मेरे घर आंगन मैं भी खुशियों
 की बौछार हो,गाड़ी बंगला नौकर- चाकर से
पूरित मेरा भी घर द्वार हो,पर ये सब सपने 
लगते है,हकीकत से आँखे दुखने लगते है
 लाचारी दिखती बात बात पर,ठेस पँहुचती
हर जज्बात पर, थकता हूँ, पर चलता हूँ में
मजबूरी मुझे चलाती है,मेहनत करके कमाता
हूँ, मैं लाचारी आँख दिखती है. सोंचता हूँ की
अब दो जुन की रोटी मिल जाए, सर पर एक 
साया छत का, और बच्चों का पेट भर जाए, 
पढाई लिखाई उनकी हो पूरी ,तो जीवन मेरा
सफ़ल  हो जाए, मुझको इस जग से चैन
से जानें का सुंदर सा बहाना  दिख जाए,
 थकता हूँ, पर चलता हूँ, में...................

©पथिक
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