सब आशिक़ मारे जाएँगे अब और कफ़्फ़ारा क्या होगा
इस मज़हब जात की बस्ती में ऐ इश्क़ तुम्हारा क्या होगा
हम कैसे भूलें गुज़रे लम्हें किस हद तक सब याद करें
अब कितने ख़त फाड़ें साहेब और कितने पन्ने राख़ करें
एहसासों की बस्ती है दिल ये सारे घर अब तोड़ ही दो
जब नज़रों पर पाबन्दी है तो ख़्वाब दिखाना छोड़ ही दो
सब साँसें गिरवी रक्खी हैं और सितम गँवारा क्या होगा #poem#yqbaba#yqdidi#urdu#yqurdu#yqbhaijan#yqhindi#yopowrimo