कविता शीर्षक - नोंच चोंथ कर खाया हैं। छोडूंगी ना दुष्ट तुझे मैं, तुने बहुत सताया है। ना जाने कितनी नारी को, खून के आँसू रूलाया है। लाज शर्म सब छोड़ दी मैने, अब तुझको मार गीराऊंगी। बरसों तक है लुटा तुने, मुझे नोंच चोंथ कर खाया है। सदियों से ममता के चलतें, मैं माफ तुझे करतीं आई। गुस्से में जब तू आँख दिखाता, तेरी आँख से मैं घबराई। कभी माँ बनीं कभी बहन बनीं, कभी पत्नी बनकर साथ निभाया। तेरे साथ जीवन के पथ पर, सारी की सारी रित निभाई। पर अब बस बहुत हुआ, और नहीं सह पाऊंगी। तेरे जैसे पापी का बोझ, और नहीं ढ़ो पाऊंगी। मैं आज सोच कर निकलीं हूँ घर से, साथ कुल्हाड़ी लाई हूँ। चंडी का रूप धरूंगी अब मैं, तेरा नामों निशा मिटाऊंगी। अजय कुमार व्दिवेदी #अजयकुमारव्दिवेदी नोंच चोंथ कर खाया है।