पुरुष प्रधान समाज में ऐसा शुरू से ही देखने को मिला कि जैसे जैसे मानव सभ्यता आगे बढ़ती गई स्त्री और पुरुष के काम भी कुछ शारीरिक और सामाजिक रूप से बाँटते गए। जिससे समाज और पुरुष दोनों ही बाहर और वर्चस्व का काम करने लगा और सोचा की हम महान देवता रूपी स्त्रीयों से श्रेष्ठ हैं। पहले भी एक स्त्री दूसरे स्त्री की दुश्मन थी और आज भी दुश्मन ही है। छोटे रूप में हम देखते हैं घर में ही सास बहू को बहू सास को ननद भाभी को भाभी ननद को पसंद नहीं करते एक दूसरे की टांग खींचते रहते हैं अब पुरुष को भी उन्हीं के अनुसार चलना पड़ता है। लेकिन धीरे धीरे बदलते परिवेश और हर रूप सक्षम स्त्री आज पुरुष से कदम से कदम मिला कर चल रही है और बराबरी कर दर्जा पा चुकी है। आज जो सवाल है शक्ति और प्रेरणा की तो पुरुष ने इस बात को स्वीकार कर चुके हैं और जान गए हैं कि अब नारी अबला नहीं सबला है आज पुरुष ना उन्हें सिर्फ इज्ज़त दे रहें हैं बल्कि वो जान गए कि आज की स्त्री सिर्फ अपनी सुन्दरता से ही नहीं अपनी बुद्धि और विवेक से भी कई क्षेत्रों में उनसे सर्वश्रेष्ठ हैं, और उनके आगे नतमस्तक हैं।
_____________________________________________
आइए लिखते हैं #ख़यालोंकीउथलपुथल
♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :)
♥️ अपना जवाब कोलाब करके लाइन के ऊपर लिखें ☝️ Collab बटन पर क्लिक कीजिए। चार बार Space पर क्लिक कीजिए और Next करके Caption में अपनी रचना लिखिए :) #yqdidi#YourQuoteAndMine#कोराकाग़ज़#collabwithकोराकाग़ज़#KKसवालजवाब#KKसवालजवाब17