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खो जाते हैं मुसाफ़िर अक़्सर वहां से गुजरते हुए, था

खो जाते हैं मुसाफ़िर अक़्सर वहां से गुजरते हुए,
था  जो  कभी  गुलिस्तां, वो अब ताल पड़ गया,
आना-जाना नहीं  अब तेरा  ख्वाबों की कस्ती में,
आंखों  के  दरिया में अब नींदों अकाल पड़ गया,

©@Rav¶Nayak_bhatneri
  aankh
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