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एक कुएं में रह रहे मेंढ़क की भांति जीवन जीने में क

एक कुएं में रह रहे मेंढ़क की भांति जीवन जीने में कोई अर्थ नही है, वास्तव में प्रकृति ने हमें हर एक जीव जंतुओं में सबसे अधिक बौद्धिक क्षमता एवं कार्यकुशल बनाया है, वर्तमान में मैं अपने ही देश में, बहुत से ऐसे लोगों को जानता हूं, जो अपने राज्य को देश मानता है एवं अन्य राज्य को देश, कहने का तात्पर्य यह है कि उसके लिए, वह व्यक्ति जिस राज्य में रह रहा है, उसके लिए वह देश है, ठीक उस कुएं की मेंढक की तरह, जिसे लगता है पानी केवल इस कुएं में ही, इसलिए शिक्षा बहुत ज़रूरी है, आज भी हमारे देश के बहुत से ऐसे राज्य है, जहां स्वयं शिक्षक एवं शिक्षिका को भारत के प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री में अंतर नही पता या अंग्रेजी के सोमवार या मंडे का स्पैलिंग तक नही पता, इसलिए शिक्षा, रोज़गार, स्वस्थ्य पर ध्यान दो, इतिहास को ना खोदो, क्योंकि जब देश में अब भी ऐसे लोग है, उन्हें लगता है, हम किसी अन्य देश की बात कर रहे है, जो वास्तव में मैं भारत की बात करता हूं, क्योंकि भारत का रहने वाला हूं।

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