पथरो क़ी बसती मे पडे रहो पत्थर बन कर. और किसी चट्टान को पूज़ो उसे ईश्वर समझ कर ज़ब तक कस्तूरी तुम्हे रिझाती रहेगीतुम भागते रहोगे कभी अपनी नाभि को टटोल कर देखो खुद को हिरण समझ कर एक पागल प्यास तुम्हे सताती रही है एक लम्बे अर्से से तभी तो अपने खारे आंसू पीते रहे हो समुन्द्र का पानी समझ कर खुदकशी करने से पहले खुद से मिल तो लो आख़री बार मौत इतनी उम्दा भी नही हैकिसी जीवन से बड़ कर तुम्हारे हर ख्वाब क़ी कहानी एक सी क्यों लगती है मुहब्बत वो चीज़ नही है जिसे बेचा जाय बाज़ार मे जाकर ©Parasram Arora पथरों क़ी बस्ती